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चाँदी का बदन सोने का मन ढूँड रहा है - प्रताप सोमवंशी कविता - Darsaal

चाँदी का बदन सोने का मन ढूँड रहा है

चाँदी का बदन सोने का मन ढूँड रहा है

औरों मैं ही अच्छाई का धन ढूँढ रहा है

कुछ पेड़ हैं नफ़रत की हवा जिन से बढ़ी है

ये बाग़ मगर अब भी अमन ढूँड रहा है

संगम के इलाक़े से है पहचान हमारी

ये दिल तो वही गंग-ओ-जमन ढूँड रहा है

अंजान से इक ख़ौफ़ को ढोता हुआ इंसान

अपने को बचाने का जतन ढूँड रहा है

गाँव के हर इक ख़्वाब में शहरों की कहानी

शहरों में जिसे देखो वतन ढूँड रहा है

लोगों ने यहाँ राम से सीखा तो यही बस

हर शख़्स ही सोने का हिरन ढूँड रहा है

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In Hindi By Famous Poet Pratap Somvanshi. is written by Pratap Somvanshi. Complete Poem in Hindi by Pratap Somvanshi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.