मैं जो तुझ से मिला नहीं होता
मैं जो तुझ से मिला नहीं होता
ये मिरा मर्तबा नहीं होता
जो मुक़द्दर में था मिला तुझ को
सब को सब कुछ अता नहीं होता
छीन मत हक़ तू अपने छोटों का
आदमी यूँ बड़ा नहीं होता
लोग यूँ तो गले लगाते हैं
प्यार दिल में ज़रा नहीं होता
साथ देता जो तू सफ़र फिर ये
इतना मुश्किल-भरा नहीं होता
हाल पढ़ लेता माँ के चेहरे से
वो जो लिक्खा-पढ़ा नहीं होता
ग़फ़लतों में 'असर' न होता तू
तीर उस का ख़ता नहीं होता
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