वो मिरे सीने से आख़िर आ लगा
वो मिरे सीने से आख़िर आ लगा
मर न जाऊँ मैं कहीं ऐसा लगा
रेत माज़ी की मिरी आँखों में थी
सब्ज़ जंगल भी मुझे सहरा लगा
खो रहे हैं रंग तेरे होंट के
हम-नशीं इन पे मिरा बोसा लगा
लहर इक निकली मिरी पहचान की
डूबते के हाथ में तिनका लगा
कर रहा था वो मुझे गुमराह क्या
हर क़दम पे रास्ता मुड़ता लगा
कुछ नहीं छोड़ो नहीं कुछ भी नहीं
ये नए अंदाज़ का शिकवा लगा
गेंद बल्ले पर कभी बैठी नहीं
हर दफ़ा मुझ से फ़क़त कोना लगा
दूर जाते वक़्त बस इतना कहा
साथ 'कानहा' आप का अच्छा लगा
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