रो-धो के सब कुछ अच्छा हो जाता है
रो-धो के सब कुछ अच्छा हो जाता है
मन जैसे रूठा बच्चा हो जाता है
कितना गहरा लगता है ग़म का साग़र
अश्क बहा लूँ तो उथला हो जाता है
लोगों को बस याद रहेगा ताज-महल
छप्पर वाला घर क़िस्सा हो जाता है
मिट जाती है मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू
कहने को तो घर पक्का हो जाता है
नींद के ख़्वाब खुली आँखों से जब देखूँ
दिल का इक कोना ग़ुस्सा हो जाता है
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