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रो-धो के सब कुछ अच्छा हो जाता है - प्रखर मालवीय कान्हा कविता - Darsaal

रो-धो के सब कुछ अच्छा हो जाता है

रो-धो के सब कुछ अच्छा हो जाता है

मन जैसे रूठा बच्चा हो जाता है

कितना गहरा लगता है ग़म का साग़र

अश्क बहा लूँ तो उथला हो जाता है

लोगों को बस याद रहेगा ताज-महल

छप्पर वाला घर क़िस्सा हो जाता है

मिट जाती है मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू

कहने को तो घर पक्का हो जाता है

नींद के ख़्वाब खुली आँखों से जब देखूँ

दिल का इक कोना ग़ुस्सा हो जाता है

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In Hindi By Famous Poet Prakhar Malviya Kanha. is written by Prakhar Malviya Kanha. Complete Poem in Hindi by Prakhar Malviya Kanha. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.