मंगल को बजरंग-बली से तेरा शुक्र मनाऊँ
और शुक्र को तू अल्लाह से मेरा मंगल माँगे
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तुम्हारी याद के मंज़र पुराने घेर लेते हैं
जब मुश्किल हालात लगे
तेरी दौलत रह जाएगी तेरे घर चौबारों तक
ठोकरों से बिखर नहीं सकती
जो हम तेरी आँखों के तारे हुए हैं
गोरख-धंधा हो जाऊँ क्या?
आदमी थे शय हुए सौदा हुए
मैं जब से सच को सच कहने लगा हूँ
बच-बचा कर जब कहा तारीफ़ मैं कम पड़ गया
दोनों जानिब क़ैद-शुदा इस ख़ुश-फ़हमी में रहते हैं
नया अब सिलसिला जोड़ा न जाए