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मैं जब से सच को सच कहने लगा हूँ - प्रबुद्ध सौरभ कविता - Darsaal

मैं जब से सच को सच कहने लगा हूँ

मैं जब से सच को सच कहने लगा हूँ

जहाँ की आँख में चुभने लगा हूँ

उजाला बाँटने की ये सज़ा है

अन्हरिया चाँद सा घटने लगा हूँ

भरम रखना उन आँखों का कि जिन को

मैं रोशन-दान सा लगने लगा हूँ

मैं उस किरदार को अब जी सकूँगा

मैं उस किरदार पर मरने लगा हूँ

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In Hindi By Famous Poet Prabudha Saurabh. is written by Prabudha Saurabh. Complete Poem in Hindi by Prabudha Saurabh. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.