प्रबुद्ध सौरभ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का प्रबुद्ध सौरभ
नाम | प्रबुद्ध सौरभ |
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अंग्रेज़ी नाम | Prabudha Saurabh |
ठोकरों से बिखर नहीं सकती
आदमी थे शय हुए सौदा हुए
मंगल को बजरंग-बली से तेरा शुक्र मनाऊँ
तुम्हारी याद के मंज़र पुराने घेर लेते हैं
तीरगी की अपनी ज़िद है जुगनुओं की अपनी ज़िद
तेरी दौलत रह जाएगी तेरे घर चौबारों तक
नया अब सिलसिला जोड़ा न जाए
मिरी आँखों से हिजरत का वो मंज़र क्यूँ नहीं जाता
मैं जब से सच को सच कहने लगा हूँ
जो हम तेरी आँखों के तारे हुए हैं
जब मुश्किल हालात लगे
गोरख-धंधा हो जाऊँ क्या?
दोनों जानिब क़ैद-शुदा इस ख़ुश-फ़हमी में रहते हैं
बच-बचा कर जब कहा तारीफ़ मैं कम पड़ गया