ज़िंदगी जब भी आज़माती है
ज़िंदगी जब भी आज़माती है
कुछ न कुछ तो हमें सिखाती है
हर हक़ीक़त समझ में आती है
मौत जब आइना दिखाती है
एक नन्ही परी है आँगन में
जो मिरे घर को घर बनाती है
कोई पागल लहर किनारे पर
जाने क्या लिखती है मिटाती है
सर-फिरी हो गई है इक लड़की
वो हवा में दिया जलाती है
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