बारहा इज़्तिराब है कोई
बारहा इज़्तिराब है कोई
ज़िंदगी है या ख़्वाब है कोई
तीरगी की अदा बताती है
दाँव पर माहताब है कोई
हो गया जिस को वो हुआ तन्हा
इश्क़ भी इक अज़ाब है कोई
तेरी जानिब ही खींच लाती है
याद जैसे सराब है कोई
उस का ख़ामोश देखना भर ही
इक मुकम्मल जवाब है कोई
जी रहा है मगर नहीं जीता
यूँ भी ख़ाना-ख़राब है कोई
हाए तहरीर उस की आँखों की
गो कि मुश्किल किताब है कोई
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