शहर तलब करे अगर तुम से इलाज-ए-तीरगी
साहिब-ए-इख़्तियार हो आग लगा दिया करो
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
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Allama Iqbal
Gulzar
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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मैं कब से अपनी तलाश में हूँ मिला नहीं हूँ
ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ
नज़र में नित-नई हैरानियाँ लिए फिरिए
ख़िर्मन-ए-जाँ के लिए ख़ुद ही शरर हो गए हम
इक सज़ा और असीरों को सुना दी जाए
अब हर्फ़-ए-तमन्ना को समाअत न मिलेगी
ज़ख़्म दबे तो फिर नया तीर चला दिया करो
ज़िंदगी ने झेले हैं सब अज़ाब दुनिया के
सानेहा नहीं टलता सानेहे पे रोने से
आवाज़ में आवाज़ मिलाते ही रहे हम
ग़म से बहल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं