ज़िंदगी ने झेले हैं सब अज़ाब दुनिया के
ज़िंदगी ने झेले हैं सब अज़ाब दुनिया के
बस रहे हैं आँखों में फिर भी ख़्वाब दुनिया के
दिल बुझे तो तारीकी दूर फिर नहीं होती
लाख सर पे आ पहुँचें आफ़्ताब दुनिया के
दश्त-ए-बे-नियाज़ी है और मैं हूँ अब लोगो
इस जगह नहीं आते बारयाब दुनिया के
मैं ने इन हवाओं से दास्तान-ए-ग़म कह दी
देखते रहे हैराँ सब हिजाब दुनिया के
देखें चश्म-ए-हैराँ क्या इंतिख़ाब करती है
मैं किताब-ए-तन्हाई तुम निसाब दुनिया के
हम ने दस्त-ए-दुनिया पर फिर भी की नहीं बैअत
जानते थे हम तेवर हैं ख़राब दुनिया के
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