नज़र में नित-नई हैरानियाँ लिए फिरिए
नज़र में नित-नई हैरानियाँ लिए फिरिए
सरों पे रोज़ नया आसमाँ लिए फिरिए
अब इस फ़ज़ा की कसाफ़त में क्यूँ इज़ाफ़ा हो
ग़ुबार-ए-दिल है सो दिल में निहाँ लिए फिरिए
यही बचा है सो अब ज़ीस्त की गवाही में
यही निशान-ए-दिल-ए-बे-निशाँ लिए फिरिए
क़रार-ए-जाँ तो सर-ए-कू-ए-यार छोड़ आए
मता-ए-ज़ीस्त है लेकिन कहाँ लिए फिरिए
अजब हुनर है कि दानिश्वरी के पैकर में
किसी का ज़ेहन किसी ज़बाँ लिए फिरिए
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