फट जाते हैं ज़ख़्म-ए-दिल-ए-बेताब के अंगूर
साक़ी तिरे हाथों से जो साग़र नहीं मिलता
Gulzar
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शब-ए-वस्ल आज वो ताकीद करते हैं मोहब्बत से
ग़ुंचे को है तिरे दहन की हिर्स
जाता है कौन आप से जल्लाद की तरफ़
तिरे अबरू पे बल आया तो होता
आए हैं बादा-नोश बड़ी आन-बान पर
ज़ीस्त ने मुर्दा बना रक्खा था मुझ को हिज्र में
न तो मैं हूर का मफ़्तूँ न परी का आशिक़
कौन कहता है तुम अदा न करो
बहार आई कर ऐ बाग़बाँ गुलाब क़लम
किसी की ज़ुल्फ़ के सौदे में रात की है बसर
है ख़ाक-बसर सबा मिरे बा'द