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आए हैं बादा-नोश बड़ी आन-बान पर - पीर शेर मोहम्मद आजिज़ कविता - Darsaal

आए हैं बादा-नोश बड़ी आन-बान पर

आए हैं बादा-नोश बड़ी आन-बान पर

मेला लगा है पीर-ए-मुग़ाँ की दुकान पर

साक़ी अता हो अब मुझे साग़र शराब का

छाई हुई है कैसी घटा आसमान पर

रोते हैं तेरे इश्क़ में ऐ रश्क-ए-माह जब

करते हैं लोग ख़ंदा हमारी फ़ुग़ान पर

पैदा हुआ असर न कभी मेरी आह में

खाया न उस ने रहम कभी बे-ज़बान पर

ऐ काश ये नसीब करें इतनी यावरी

पहुँचूँ कभी मैं शब को तुम्हारे मकान पर

किस शान से वो आज गए हैं अदू के घर

मुझ से बिगड़ के पहुँचे हैं वो आसमान पर

अल्लाह शब-ए-फ़िराक़ में वो आह-ओ-ज़ारियाँ

हर वक़्त सदमे कैसे हैं मुझ नीम-जान पर

लिक्खा जो ख़त्त-ए-शौक़ उन्हें मैं ने हिज्र में

रोने लगे रक़ीब भी मेरे बयान पर

यारब तिरे ही फ़ज़्ल का उमीद-वार हूँ

खाता नहीं है रहम कोई ना-तवान पर

हर-दम तिरे फ़िराक़ में फिरता हूँ सू-ब-सू

लाखों बलाएँ आती हैं 'आजिज़' की जान पर

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In Hindi By Famous Poet Peer Sher Mohammad Ajiz. is written by Peer Sher Mohammad Ajiz. Complete Poem in Hindi by Peer Sher Mohammad Ajiz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.