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तक़्सीम तज़्किरे को मैं कैसे रक़म करूँ - पवन कुमार कविता - Darsaal

तक़्सीम तज़्किरे को मैं कैसे रक़म करूँ

तक़्सीम तज़्किरे को मैं कैसे रक़म करूँ

तन्हाइयों में बैठूँ कि आँखों को नम करूँ

हिर्स-ओ-हवस के साथ भी फ़ानी है ज़िंदगी

क्या इस के वास्ते कोई सामाँ बहम करूँ

बढ़ने लगा है सिलसिला-ए-एतिमाद फिर

इस सिलसिले को और बढ़ाऊँ कि कम करूँ

तू फिर से आ गया है मिरी ज़िंदगी में दोस्त

इस बात का मैं लुत्फ़ उठाऊँ कि ग़म करूँ

मक़्सद है मेरे सामने अपनी शनाख़्त का

पामाल रास्तों को मैं क्यूँ हम-क़दम करूँ

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In Hindi By Famous Poet Pawan Kumar. is written by Pawan Kumar. Complete Poem in Hindi by Pawan Kumar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.