प्यासे को हर क़तरा सागर लगता है

प्यासे को हर क़तरा सागर लगता है

हर मंज़र अब उस का मंज़र लगता है

हम ने अपने क़द को इतना खींच लिया

जब भी उठते हैं छत में सर लगता है

आया है वो जब तो कोई बात करे

उस की इस ख़ामोशी से डर लगता है

होती है तब अपने की पहचान हमें

पीठ में जब भी कोई ख़ंजर लगता है

मिलता है वो जब भी आ कर ख़्वाबों में

यादों का एक मेला शब-भर लगता है

दिन-भर ख़्वाब नज़र आते हैं महलों के

शाम ढले फुट-पाथ पे बिस्तर लगता है

वर्ना तो हैं 'शोख़ फ़क़त कुछ दीवारें

वो जब आ जाता है तो घर लगता है

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In Hindi By Famous Poet Parvindar Shokh. is written by Parvindar Shokh. Complete Poem in Hindi by Parvindar Shokh. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.