मैं मुंकिर-ए-अस्लाफ़ नहीं हूँ यारो
कुछ हासिद-ए-औसाफ़ नहीं हूँ यारो
हर शेर में भरता हूँ मगर वक़्त की आग
शाएर हूँ सुख़न-ए-बाफ़ नहीं हूँ यारो
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सहराओं की बात ज़ारों में कही
ये ताज के साए में ज़र-ओ-सीम के ख़िर्मन
तुम ख़ुनुक जज़्बा हो बे-ताबी-ए-फ़न क्या जानो?
शिकायत कर रहे हैं सज्दा-हा-ए-राएगाँ मुझ से
मौक़ा-ए-यास कभी तेरी नज़र ने न दिया
नालों से कभी नाम न लूँगा ऐ दोस्त
निपटेंगे दिल से मार्का-ए-रह-गुज़र के ब'अद
याद हैं आप के तोड़े हुए पैमाँ हम को
न जाने कह गए क्या आप मुस्कुराने में
बाँध कर कफ़न सर से यूँ खड़ा हूँ मक़्तल में
दिल की धड़कनों से इक दास्ताँ बनाना है