ये ताज के साए में ज़र-ओ-सीम के ख़िर्मन
क्यूँ आतिश-ए-कश्कोल-ए-गदा से नहीं डरते
Ahmad Faraz
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Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
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दिल ही की तरह मुँह भी है काला देखो
सहमे सहमे दिलों में हिम्मत जागी
मैं मुंकिर-ए-अस्लाफ़ नहीं हूँ यारो
साग़र-ए-सिफ़ालीं को जाम-ए-जम बनाया है
सख़्त-जाँ वो हूँ कि मक़्तल से सर-अफ़राज़ आया
दिल की धड़कनों से इक दास्ताँ बनाना है
मौक़ा-ए-यास कभी तेरी नज़र ने न दिया
याद हैं आप के तोड़े हुए पैमाँ हम को
मंज़िल भी मिलेगी रस्ते में तुम राहगुज़र की बात करो
रिंदों में नहीं कोई रक़ाबत साक़ी
ख़ामोशी बोहरान-ए-सदा है तुम भी चुप हो हम भी चुप
क्या रंग-ए-ज़मीन-ओ-आसमाँ है साक़ी