याद हैं आप के तोड़े हुए पैमाँ हम को
कीजिए और न शर्मिंदा-ए-एहसाँ हम को
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रोता ही रहूँगा मुस्कुराने तो दो
बहरा गोया
शिकायत कर रहे हैं सज्दा-हा-ए-राएगाँ मुझ से
सुना है उन के लब पर कल था ज़िक्र-ए-मुख़्तसर मेरा
सैलाब-ए-बला रक़्स न फ़रमाए कहीं
सुन सकते हो नग़्मा आज भी तुम मेरा
ज़ुल्मत का तिलिस्म तोड़ कर लाया हूँ
सय्यारों में साहिल है वो अज़्मत तुझ को
मौक़ा-ए-यास कभी तेरी नज़र ने न दिया
मिरी ज़िंदगी की ज़ीनत हुई आफ़त-ओ-बला से
हर पत्ते में इक धार लिए चटकेंगे
ब़ाँबी