मिरी ज़िंदगी की ज़ीनत हुई आफ़त-ओ-बला से
मैं वो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म हूँ जो सँवर गई हवा से
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साग़र-ए-सिफ़ालीं को जाम-ए-जम बनाया है
तुम ख़ुनुक जज़्बा हो बे-ताबी-ए-फ़न क्या जानो?
याद हैं आप के तोड़े हुए पैमाँ हम को
फ़सुर्दा है इल्म हर्फ़-हा-ए-किताब भी बुझ के रह गए हैं
छुप कर न रह सके निगह-ए-अहल-ए-फ़न से हम
बहरा गोया
लज़्ज़त में ख़ुदी की खो गया है ज़ाहिद
मंज़िल भी मिलेगी रस्ते में तुम राहगुज़र की बात करो
मौक़ा-ए-यास कभी तेरी नज़र ने न दिया
सय्यारों में साहिल है वो अज़्मत तुझ को
ज़िंदगी ने फ़स्ल-ए-गुल को भी पशेमाँ कर दिया
गीत हरियाली के गाएँगे सिसकते हुए खेत