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मौक़ा-ए-यास कभी तेरी नज़र ने न दिया - परवेज़ शाहिदी कविता - Darsaal

मौक़ा-ए-यास कभी तेरी नज़र ने न दिया

मौक़ा-ए-यास कभी तेरी नज़र ने न दिया

शर्त जीने की लगा दी मुझे मरने न दिया

कम से कम मैं ग़म-ए-दुनिया को भुला सकता था

पर तिरी याद ने ये काम भी करने न दिया

तेरी ग़म-ख़्वार निगाहों के तसद्दुक़ कि मुझे

ग़म-ए-हस्ती की बुलंदी से उतरने न दिया

वो तिरी सुर्ख़ी-ए-आरिज़ कि क़रीब आ न सकी

रंग जिस फ़िक्र को भी ख़ून-ए-जिगर ने न दिया

हुस्न-ए-हम-दर्द तिरा हम-सफ़र-ए-शौक़ रहा

मुझ को तन्हा किसी मंज़िल से गुज़रने न दिया

कितनी ख़ुश-ज़ौक़ है तेरी निगह-ए-बादा-फ़रोश

ख़ाली रहने न दिया जाम को भरने न दिया

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In Hindi By Famous Poet Parvez Shahidi. is written by Parvez Shahidi. Complete Poem in Hindi by Parvez Shahidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.