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बंद कमरे में हूँ और कोई दरीचा भी नहीं - परवेज़ बज़्मी कविता - Darsaal

बंद कमरे में हूँ और कोई दरीचा भी नहीं

बंद कमरे में हूँ और कोई दरीचा भी नहीं

किसी दस्तक का लरज़ता हुआ झोंका भी नहीं

तीरगी ओढ़ के आई है घटा की चादर

और फ़ानूस कोई आह का जलता भी नहीं

कल मिरे साए में सुस्ताई थी सदियों की थकन

आज वो पेड़ हूँ जिस पर कोई पत्ता भी नहीं

धूप के दश्त का दरपेश सफ़र है मुझ को

साथ देने को मगर कोई परिंदा भी नहीं

अपना ख़ूँ राह में फैलाईं लकीरों की तरह

आने वाले न कहीं नक़्श-ए-कफ़-ए-पा भी नहीं

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In Hindi By Famous Poet Parvez Bazmi. is written by Parvez Bazmi. Complete Poem in Hindi by Parvez Bazmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.