वो ही आसान करेगा मिरी दुश्वारी को
जिस ने दुश्वार किया है मिरी आसानी को
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बदली हुई है चर्ख़ की रफ़्तार आज-कल
मर चुका मैं तो नहीं इस से मुझे कुछ हासिल
बहुत ही साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ आ गया तक़दीर से काग़ज़
मुझ को क्या फ़ाएदा गर कोई रहा मेरे ब'अद
ज़बाँ है बे-ख़बर और बे-ज़बाँ दिल
जिस तरह दो-जहाँ में ख़ुदा का नहीं शरीक
हज़ार शर्म करो वस्ल में हज़ार लिहाज़
दिलवाइए बोसा ध्यान भी है
नेक-ओ-बद की जिसे ख़बर ही नहीं
अहल-ए-दुनिया बावले हैं बावलों की तू न सुन
खिलाया परतव-ए-रुख़्सार ने क्या गुल समुंदर में
बाल रुख़्सारों से जब उस ने हटाए तो खुला