कुछ तो कमी हो रोज़-ए-जज़ा के अज़ाब में
अब से पिया करेंगे मिला कर गुलाब में
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Habib Jalib
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Gulzar
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Jaun Eliya
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सुनते सुनते वाइ'ज़ों से हज्व-ए-मय
इक अदना सा पर्दा है इक अदना सा तफ़ावुत
बाज़ी पे दिल लगा है कोई दिल-लगी नहीं
बदली हुई है चर्ख़ की रफ़्तार आज-कल
ऐ सबा चलती है क्यूँ इस दर्जा इतराई हुई
बहुत दिन दर्स-ए-उल्फ़त में कटे हैं
अब कोई तिरा मिस्ल नहीं नाज़-ओ-अदा में
बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल
करेंगे ज़ुल्म दुनिया पर ये बुत और आसमाँ कब तक
मेरे लिए हज़ार करे एहतिमाम हिर्स
फ़र्क़ क्या मक़्तल में और गुलज़ार में