कभी न जाएगा आशिक़ से देख-भाल का रोग
पिलाओ लाख उसे बद-मज़ा दवा-ए-फ़िराक़
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अहल-ए-दुनिया बावले हैं बावलों की तू न सुन
किस तरह कर दिया दिल-ए-नाज़ुक को चूर-चूर
दिए जाएँगे कब तक शैख़-साहिब कुफ़्र के फ़तवे
है अपने क़त्ल की दिल-ए-मुज़्तर को इत्तिलाअ
किसी की किसी को मोहब्बत नहीं है
दिल में तीर-ए-इश्क़ है और फ़र्क़ पर शमशीर-ए-इश्क़
होती न शरीअ'त में परस्तिश कभी ममनूअ
देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
जाता रहा क़ल्ब से सारी ख़ुदाई का इश्क़
क्यूँ उजाड़ा ज़ाहिदो बुत-ख़ाना-ए-आबाद को
बहुत दिन दर्स-ए-उल्फ़त में कटे हैं