जुनूँ होता है छा जाती है हैरत
कमाल-ए-अक़्ल इक दीवाना-पन है
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जो चार आदमियों में गुनाह करते हैं
दिल में तीर-ए-इश्क़ है और फ़र्क़ पर शमशीर-ए-इश्क़
वो ही आसान करेगा मिरी दुश्वारी को
कभी न जाएगा आशिक़ से देख-भाल का रोग
बहुत दिन दर्स-ए-उल्फ़त में कटे हैं
ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम हक़ पे हैं बातिल से क्या निस्बत
वक़्त पर आते हैं न जाते हैं
मेरी इज़्ज़त बढ़ गई इक पान में
पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़
नए ग़म्ज़े नए अंदाज़ नज़र आते हैं
ज़बाँ है बे-ख़बर और बे-ज़बाँ दिल
दिल पुकारा फँस के कू-ए-यार में