हवा में जब उड़ा पर्दा तो इक बिजली सी कौंदी थी
ख़ुदा जाने तुम्हारा परतव-ए-रुख़्सार था क्या था
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ज़ाहिद सँभल ग़ुरूर ख़ुदा को नहीं पसंद
बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल
मेरी इज़्ज़त बढ़ गई इक पान में
न आया कर के व'अदा वस्ल का इक़रार था क्या था
चुभेंगे ज़ीरा-हा-ए-शीशा-ए-दिल दस्त-ए-नाज़ुक में
वक़्त पर आते हैं न जाते हैं
करेंगे ज़ुल्म दुनिया पर ये बुत और आसमाँ कब तक
मुझ को दुनिया की तमन्ना है न दीं का लालच
दिए जाएँगे कब तक शैख़-साहिब कुफ़्र के फ़तवे
वो ही आसान करेगा मिरी दुश्वारी को
जिस तरह दो-जहाँ में ख़ुदा का नहीं शरीक
वाइ'ज़ को लअ'न-तअ'न की फ़ुर्सत है किस तरह