गर आप पहले रिश्ता-ए-उल्फ़त न तोड़ते
मर मिट के हम भी ख़ैर निभाते किसी तरह
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
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कुछ तबीअत आज-कल पाता हूँ घबराई हुई
इक अदना सा पर्दा है इक अदना सा तफ़ावुत
अहल-ए-दुनिया बावले हैं बावलों की तू न सुन
पहलू-ओ-पुश्त-ओ-सीना-ओ-रुख़्सार आइना
खिलाया परतव-ए-रुख़्सार ने क्या गुल समुंदर में
मुझ को दुनिया की तमन्ना है न दीं का लालच
नए ग़म्ज़े नए अंदाज़ नज़र आते हैं
वो ही आसान करेगा मिरी दुश्वारी को
बहुत दिन दर्स-ए-उल्फ़त में कटे हैं
मख़्लूक़ को तुम्हारी मोहब्बत में ऐ बुतो
ग़रीब आदमी को ठाट पादशाही का
कुछ तो कमी हो रोज़-ए-जज़ा के अज़ाब में