फ़र्क़ क्या मक़्तल में और गुलज़ार में
ढाल में हैं फूल फल तलवार में
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बहुत दिन दर्स-ए-उल्फ़त में कटे हैं
ग़रीब आदमी को ठाट पादशाही का
दिल में तीर-ए-इश्क़ है और फ़र्क़ पर शमशीर-ए-इश्क़
वाइ'ज़ को लअ'न-तअ'न की फ़ुर्सत है किस तरह
बाल रुख़्सारों से जब उस ने हटाए तो खुला
दिए जाएँगे कब तक शैख़-साहिब कुफ़्र के फ़तवे
निकाली जाए किस तरकीब से तक़रीर की सूरत
उसी दिन से मुझे दोनों की बर्बादी का ख़तरा था
जिस तरह दो-जहाँ में ख़ुदा का नहीं शरीक
मुझे जब मार ही डाला तो अब दोनों बराबर हैं
देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
मेरे लिए हज़ार करे एहतिमाम हिर्स