दिए जाएँगे कब तक शैख़-साहिब कुफ़्र के फ़तवे
रहेंगी उन के संददुक़चा में दीं की कुंजियाँ कब तक
Rahat Indori
Parveen Shakir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Wasi Shah
Habib Jalib
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
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फ़र्क़ क्या मक़्तल में और गुलज़ार में
खिलाया परतव-ए-रुख़्सार ने क्या गुल समुंदर में
दिल पुकारा फँस के कू-ए-यार में
पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़
चुभेंगे ज़ीरा-हा-ए-शीशा-ए-दिल दस्त-ए-नाज़ुक में
जाँ घुल चुकी है ग़म में इक तन है वो भी मोहमल
बहुत से ज़मीं में दबाए गए हैं
मर चुका मैं तो नहीं इस से मुझे कुछ हासिल
ऐ सबा चलती है क्यूँ इस दर्जा इतराई हुई
बाज़ी पे दिल लगा है कोई दिल-लगी नहीं
इक अदना सा पर्दा है इक अदना सा तफ़ावुत
जो चार आदमियों में गुनाह करते हैं