चुभेंगे ज़ीरा-हा-ए-शीशा-ए-दिल दस्त-ए-नाज़ुक में
सँभल कर हाथ डाला कीजिए मेरे गरेबाँ पर
Gulzar
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क्यूँ उजाड़ा ज़ाहिदो बुत-ख़ाना-ए-आबाद को
सुनते सुनते वाइ'ज़ों से हज्व-ए-मय
ठहर जाओ बोसे लेने दो न तोड़ो सिलसिला
बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल
मुद्दत से इश्तियाक़ है बोस-ओ-कनार का
ख़ाक कर डालें अभी चाहें तो मय-ख़ाने को हम
जुनूँ होता है छा जाती है हैरत
बाज़ी पे दिल लगा है कोई दिल-लगी नहीं
मुझ को क्या फ़ाएदा गर कोई रहा मेरे ब'अद
खिलाया परतव-ए-रुख़्सार ने क्या गुल समुंदर में
इक अदना सा पर्दा है इक अदना सा तफ़ावुत
उसी दिन से मुझे दोनों की बर्बादी का ख़तरा था