बाल रुख़्सारों से जब उस ने हटाए तो खुला
दो फ़रंगी सैर को निकले हैं मुल्क-ए-शाम से
Rahat Indori
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Gulzar
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(330) Peoples Rate This
ख़ाक कर डालें अभी चाहें तो मय-ख़ाने को हम
जुनूँ होता है छा जाती है हैरत
कुछ तो कमी हो रोज़-ए-जज़ा के अज़ाब में
बहुत दिन दर्स-ए-उल्फ़त में कटे हैं
जो चार आदमियों में गुनाह करते हैं
फैला हुआ है बाग़ में हर सम्त नूर-व-सुब्ह
अहल-ए-दुनिया बावले हैं बावलों की तू न सुन
निकाली जाए किस तरकीब से तक़रीर की सूरत
क्यूँ उजाड़ा ज़ाहिदो बुत-ख़ाना-ए-आबाद को
कभी न जाएगा आशिक़ से देख-भाल का रोग
कुछ तबीअत आज-कल पाता हूँ घबराई हुई
मैं चुप कम रहा और रोया ज़ियादा