ऐ सबा चलती है क्यूँ इस दर्जा इतराई हुई
उड़ गई काफ़ूर बन बन कर हया आई हुई
Allama Iqbal
Wasi Shah
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Habib Jalib
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कुछ तो कमी हो रोज़-ए-जज़ा के अज़ाब में
मुद्दत से इश्तियाक़ है बोस-ओ-कनार का
पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़
बाज़ी पे दिल लगा है कोई दिल-लगी नहीं
हवा में जब उड़ा पर्दा तो इक बिजली सी कौंदी थी
अब कोई तिरा मिस्ल नहीं नाज़-ओ-अदा में
सुनते सुनते वाइ'ज़ों से हज्व-ए-मय
जुनूँ होता है छा जाती है हैरत
जाता रहा क़ल्ब से सारी ख़ुदाई का इश्क़
फैला हुआ है बाग़ में हर सम्त नूर-व-सुब्ह
नए ग़म्ज़े नए अंदाज़ नज़र आते हैं