वक़्त पर आते हैं न जाते हैं
वक़्त पर आते हैं न जाते हैं
रोज़ इक़रार भूल जाते हैं
वो जो बे-वजह मुस्कुराते हैं
सैकड़ों वहम दिल में आते हैं
अश्क-ए-हसरत निकल के दामन में
जान से हाथ धोए आते हैं
जब तुम आते नहीं हो व'अदे पर
मलक-उल-मौत को बुलाते हैं
सो गया बख़्त जब से रो रो कर
सारे हम-सायों को जगाते हैं
उन को शर्म-ओ-हया नहीं आती
दिल चुरा कर नज़र चुराते हैं
बे-ख़ता है वो आसमाँ मुजरिम
इस को इल्ज़ाम क्यूँ लगाते हैं
जान कर बन गए हैं हम भोले
चुटकियों में किसे उड़ाते हैं
तेरे कूचे में हम भी अब थक कर
दिल के मानिंद बैठे जाते हैं
ग़ैर क्या और उस की हस्ती क्या
आप क्यूँ मुफ़्त ख़ौफ़ खाते हैं
कोई ताज़ा सितम किया ईजाद
देख कर वो जो मुस्कुराते हैं
आग पानी में क्यूँ लगाते हो
नेक जो लोग हैं बुझाते हैं
तुम मिरे दिल में हो तो देखूँ मैं
हूर ओ ग़िल्माँ कहीं समाते हैं
मैं ने पूछी जो वज्ह-ए-क़त्ल कहा
ठहरो दम ले के हम बताते हैं
इश्क़ तेरे तुफ़ैल दुनिया के
तंज़ें सुनते हैं ताने खाते हैं
बे-सबब क्या बिगड़ने का बाइस
आप 'परवीं' को भी बनाते हैं
(349) Peoples Rate This