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पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़ - परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ कविता - Darsaal

पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़

पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़

हो जाए न परतव से तिरे कौन-ओ-मकाँ सुर्ख़

याँ बादा-ए-अहमर के छलकते हैं जो साग़र

ऐ पीर-ए-मुग़ाँ देख कि है सारी दुकाँ सुर्ख़

पी बादा-ए-अहमर तो ये कहने लगा गुल-रू

मैं सुर्ख़ हूँ तुम सुर्ख़ ज़मीं सुर्ख़ ज़माँ सुर्ख़

क्या पान की सुर्ख़ी ने किया क़त्ल किसी को

शिद्दत से है क्यूँ आज तिरी तेग़-ए-ज़बाँ सुर्ख़

सीने में दिल-ए-ग़म-ज़दा ख़ूँ हो गया शायद

बे-वज्ह भी होते हैं कहीं अश्क-ए-रवाँ सुर्ख़

क्या भड़के है सीने में मिरे आतिश-ए-फ़ुर्क़त

जो आह के हम-राह निकलता है धुआँ सुर्ख़

ये क़त्ल-ए-ख़िज़ाँ पर हैं जवानान-ए-चमन शाद

हर सम्त गुल-ओ-लाला उड़ाते हैं निशाँ सुर्ख़

गर मेरी शहादत की बशारत नहीं 'परवीं'

फिर क्यूँ है ख़त-ए-शौक़ के उनवाँ ये निशाँ सुर्ख़

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In Hindi By Famous Poet Parveen Umm-e-Mushtaq. is written by Parveen Umm-e-Mushtaq. Complete Poem in Hindi by Parveen Umm-e-Mushtaq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.