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फैला हुआ है बाग़ में हर सम्त नूर-व-सुब्ह - परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ कविता - Darsaal

फैला हुआ है बाग़ में हर सम्त नूर-व-सुब्ह

फैला हुआ है बाग़ में हर सम्त नूर-व-सुब्ह

बुलबुल के चहचहों से है ज़ाहिर सुरूर-ए-सुब्ह

बैठे हो तुम जो चेहरे से उल्टे नक़ाब को

फैला हुआ है चार तरफ़ शब को नूर-व-सुब्ह

बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल

सूरज ग़ुरूब होते ही ज़ाहिर हो नूर-व-सुब्ह

पौ फटते ही रियाज़-ए-जहाँ ख़ुल्द बन गया

ग़िल्मान-ए-महर साथ लिए आई हूर-ए-सुब्ह

मुर्ग़-ए-सहर अदू न मोअज़्ज़िन की कुछ ख़ता

'परवीं' शब-ए-विसाल में सब है फ़ुतूर-ए-सुब्ह

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In Hindi By Famous Poet Parveen Umm-e-Mushtaq. is written by Parveen Umm-e-Mushtaq. Complete Poem in Hindi by Parveen Umm-e-Mushtaq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.