निकाली जाए किस तरकीब से तक़रीर की सूरत
निकाली जाए किस तरकीब से तक़रीर की सूरत
वो आईने की सूरत और मैं तस्वीर की सूरत
गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत कर लिया बातों ही बातों में
तसलसुल से नुमायाँ हो गई ज़ंजीर की सूरत
ज़ियादा आईने से है मुनव्वर मुसहफ़-ए-आरिज़
और इस पर ख़ाल-ए-मुश्कीं आया-ए-ततहीर की सूरत
तिरे तेवर बदलते ही ज़माना हो गया दुश्मन
हिलाल-ए-ईद भी ज़ाहिर हुआ शमशीर की सूरत
सितम हो जाएगा गर बाल भी बेका हुआ उस का
निकल कर आह सीने से गई है तीर की सूरत
कभी मीठी निगाहें हैं कभी तेवर बदलते हैं
न मरता हूँ न जीता हूँ ये है ताज़ीर की सूरत
मज़ा क्या उस बुत-ए-बे-पीर से दिल के लगाने का
जो ख़ल्वत में हो बुत महफ़िल में हो तस्वीर की सूरत
ख़फ़ा होते ही कुछ का कुछ भवों का हो गया नक़्शा
कभी ख़ंजर की सूरत और कभी शमशीर की सूरत
जिसे मिल जाए ख़ाक-ए-पाक-ए-दश्त-ए-कर्बला 'परवीं'
पलट कर भी न देखे वो कभी इक्सीर की सूरत
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