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नए ग़म्ज़े नए अंदाज़ नज़र आते हैं - परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ कविता - Darsaal

नए ग़म्ज़े नए अंदाज़ नज़र आते हैं

नए ग़म्ज़े नए अंदाज़ नज़र आते हैं

दिन-ब-दिन हुस्न के एजाज़ नज़र आते हैं

वो शहीद-ए-निगह-ए-नाज़ नज़र आते हैं

आज-कल और ही अंदाज़ नज़र आते हैं

सर झुकाए हुए चलता हूँ तिरे कूचे में

क्यूँकि सर-बाज़ ही सर-बाज़ नज़र आते हैं

बहुत ऊँचे न उड़े हैं न उड़ेंगे गेसू

ये कबूतर तो गिरह-बाज़ नज़र आते हैं

झूट ख़ुद बोलना उल्टा मुझे झूटा कहना

सच है दम-बाज़ों को दम-बाज़ नज़र आते हैं

भेज तो दी है ग़ज़ल देखिए ख़ुश हों कि न हों

कुछ खटकते होए अल्फ़ाज़ नज़र आते हैं

ग़म्ज़ा-ओ-नाज़-ओ-अदा मेहर-ओ-वफ़ा जौर-ओ-जफ़ा

सब के सब ख़ाना-बर-अंदाज़ नज़र आते हैं

लुत्फ़ आए जो शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन सो जाए

क्यूँकि वो गोश-बर-आवाज़ नज़र आते हैं

उमर गुज़री हमीं सरकार पे मरते मरते

जान देते हैं तो जाँ-बाज़ नज़र आते हैं

बुलबुलों से नहीं गुलज़ार-ए-ज़माना ख़ाली

शुक्र है याँ भी हम-आवाज़ नज़र आते हैं

बद-गुमानी भी मोहब्बत का निशाँ है 'परवीं'

ग़लती हो तो हो नाराज़ नज़र आते हैं

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In Hindi By Famous Poet Parveen Umm-e-Mushtaq. is written by Parveen Umm-e-Mushtaq. Complete Poem in Hindi by Parveen Umm-e-Mushtaq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.