मुतकब्बिर न हो ज़रदार बड़ी मुश्किल है
मुतकब्बिर न हो ज़रदार बड़ी मुश्किल है
सब है आसान ये सरकार बड़ी मुश्किल है
कुफ़्र पर ख़ल्क़ है तय्यार बड़ी मुश्किल है
दीन बिल्कुल नहीं दरकार बड़ी मुश्किल है
कैसे टेढ़ा न चले मार बड़ी मुश्किल है
सीधी हो ज़ुल्फ़-ए-गिरह-दार बड़ी मुश्किल है
और होंगे वो कोई दाम में आने वाले
मुर्ग़-ए-दाना हो गिरफ़्तार बड़ी मुश्किल है
दिल है ग़मनाक तो कौनैन है मातम-ख़ाना
रोते हैं सब दर-ओ-दीवार बड़ी मुश्किल है
लोग कहते हैं कि दिल उस को न देना लेकिन
ब'अद इक़रार कै इंकार बड़ी मुश्किल है
शोला-ए-हुस्न-ए-बुताँ फूँक न दे आलम को
सुर्ख़ हैं फूल से रुख़्सार बड़ी मुश्किल है
इन दिनों हज़रत-ए-यूसुफ़ की वो ना-क़दरी है
नहीं बुढ़िया भी ख़रीदार बुरी मुश्किल है
मिल के रहना ही नहिं जानता याँ अब कोई
जान-ओ-दिल में भी है तकरार बड़ी मुश्किल है
न तरद्दुद का मज़ा है न सुकूँ की लज़्ज़त
कभी वादा कभी इंकार बड़ी मुश्किल है
तालिब-ए-सुल्ह हूँ मैं और नज़र तालिब-ए-जंग
रात दिन लड़ने पे तय्यार बड़ी मुश्किल है
हाए दुनिया में किसी में नहीं इतनी भी वफ़ा
जितना कुत्ता है वफ़ादार बड़ी मुश्किल है
आज तुम तेग़-ब-कफ़ हो तो सफ़ा-चट मैदाँ
कौन मरने पे हो तय्यार बड़ी मुश्किल है
जिंस-ए-दिल बेचने की हम को ज़रूरत 'परवीं'
और मादूम ख़रीदार बड़ी मुश्किल है
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