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मुझ को दुनिया की तमन्ना है न दीं का लालच - परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ कविता - Darsaal

मुझ को दुनिया की तमन्ना है न दीं का लालच

मुझ को दुनिया की तमन्ना है न दीं का लालच

हाए लालच है तो इक माह-जबीं का लालच

इश्क़-बाज़ी पे सुना मुझ को मलामत न करो

हैफ़ है जिस को न हो तुम से हसीं का लालच

हालत-ए-क़ल्ब सर-ए-बज़्म बताऊँ क्यूँकर

पर्दा-ए-दिल में है इक पर्दा-नशीं का लालच

जब यहीं तैश में गुज़रे तो वहाँ क्या उम्मीद

न रहा इस लिए हम को तो कहीं का लालच

बोरिया तख़्त-ए-सुलैमाँ से कहीं बेहतर है

हम ग़रीबों को नहीं ताज-ओ-नगीं का लालच

न मैं दुनिया का तलबगार न उक़्बा की हवस

आसमानों की तमन्ना न ज़मीं का लालच

दिल भी दो जान भी दो ज़र भी दो उस को 'परवीं'

बढ़ गया सब से मिरे माह-जबीं का लालच

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In Hindi By Famous Poet Parveen Umm-e-Mushtaq. is written by Parveen Umm-e-Mushtaq. Complete Poem in Hindi by Parveen Umm-e-Mushtaq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.