मेरी इज़्ज़त बढ़ गई इक पान में
मेरी इज़्ज़त बढ़ गई इक पान में
फ़र्क़ क्या आया तुम्हारी शान में
उन को देखा तो कहा यूँ कान में
क्यूँ ख़लल डाला मिरे ईमान में
आशिक़ी है बहर-ए-नापैदा-कनार
कश्ती-ए-दिल आ गई तूफ़ान में
है यही पहचान बाली उम्र की
बालियाँ वो दो फ़क़त हैं कान में
तेरे सदक़े के लिए हाज़िर हैं सब
दुर समुंदर में जवाहर कान में
दे के दिल उस बुत को अपना कर लिया
इस तिजारत में नहीं नुक़सान में
क्या मय-ए-गुल-गूँ से रौनक़ घट गई
रंग बल्कि आ गया ईमान में
उस बुत-ए-काफ़िर को सज्दा कर लिया
इस से क्या आया ख़लल ईमान में
तुम परी का फ़ख़्र हो हूरों का नाज़
काश होते फ़िरक़ा-ए-इंसान में
उस के रुख़्सारों पे है ख़त की नुमूद
हाशिया ये है नया क़ुरआन में
गेसू-ए-पेचाँ तिरे रुख़्सार पर
सूरा-ए-वल्लैल है क़ुरआन में
आरिज़-ए-ताबाँ पे है ख़त की नुमूद
हब्शियों की फ़ौज या ईरान में
कह दो पेश आया करे अच्छी तरह
चल न जाए मुझ में और दरबान में
वो करें ज़ुल्म और तुम लब पर न लाओ
वर्ना गुस्ताख़ी है उन की शान में
सुनते सुनते वाइज़ों से हज्व-ए-मय
ज़ोफ़ सा कुछ आ गया ईमान में
यूँ कहूँगा वूँ कहूँगा था ख़याल
रू-ब-रू कुछ भी न आया ध्यान में
उस की क़ुदरत से नहीं 'परवीं' बईद
राई को पर्बत बना दे आन में
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