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मैं चुप रहूँ तो गोया रंज-ओ-ग़म-ए-निहाँ हूँ - परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ कविता - Darsaal

मैं चुप रहूँ तो गोया रंज-ओ-ग़म-ए-निहाँ हूँ

मैं चुप रहूँ तो गोया रंज-ओ-ग़म-ए-निहाँ हूँ

बोलूँ तो सर से पा तक हसरत की दास्ताँ हूँ

मसरूर हो तू मुझ से मैं तुझ से शादमाँ हूँ

तू मेरा मेहमाँ हो मैं तेरा मेज़बाँ हूँ

कहती है उन की मस्ती होश आए तो मैं पूछूँ

ऐ बे-ख़ुदी बता दे इस वक़्त मैं कहाँ हूँ

इरशाद पर नज़र है ख़ामोश हूँ कि गोया

चाहो तो बे-ज़बाँ हूँ चाहो तो बा-ज़बाँ हूँ

जाँ घुल चुकी है ग़म में इक तन है वो भी मोहमल

मअनी नहीं हैं बिल्कुल मुझ में अगर बयाँ हूँ

मैं हूँ जुनूँ के हाथों मख़्लूक़ का तमाशा

ना-मेहरबाँ हूँ ख़ुद पर दुनिया पे मेहरबाँ हूँ

अल्लाह-रे उस की चौखट है बोसा-गाह-ए-आलम

कहता है संग-ए-असवद मैं संग-ए-आस्ताँ हूँ

कहता है मेरा नाला लब तक मैं आते आते

सौ जा थमा हूँ रह में इस दर्जा ना-तवाँ हूँ

नफ़रत हो जिस को मुझ से मिलने का उस से हासिल

नज़रों में क्यूँ सुबुक हूँ ख़ातिर पे क्यूँ गिराँ हूँ

मुद्दत में तुम मिले हो क्यूँ ज़िक्र-ए-ग़ैर आए

मैं अपने साए से भी ख़ल्वत में बद-गुमाँ हूँ

चुप रह गया पयामी लेकिन ये ख़ैर गुज़री

ख़त ने कहा कि सुनिए 'परवीं' की मैं ज़बाँ हूँ

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In Hindi By Famous Poet Parveen Umm-e-Mushtaq. is written by Parveen Umm-e-Mushtaq. Complete Poem in Hindi by Parveen Umm-e-Mushtaq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.