ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम हक़ पे हैं बातिल से क्या निस्बत
ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम हक़ पे हैं बातिल से क्या निस्बत
हमें तुम से तअल्लुक़ है मह-ए-कामिल से क्या निस्बत
मह-ए-कनआँ को मेरे इस मह-ए-कामिल से क्या निस्बत
ज़ुलेख़ा के मुलव्विस दिल को मेरे दिल से क्या निस्बत
हमा का रम ज़ि-ख़ुद-कामी ब-बदनामी कशीद आख़िर
कभी मैं ने न सोचा राज़ को महफ़िल से क्या निस्बत
कहे जाता है जो वाइज़ सुने जाते हैं हम लेकिन
जो अहल-ए-दिल नहीं उस को हमारे दिल से क्या निस्बत
मुझे है सदमा-ए-हिज्राँ अदू को सैकड़ों ख़ुशियाँ
मिरे उजड़े हुए घर को भरी महफ़िल से क्या निस्बत
ख़ुदा ही फिर भरोसा है ख़ुदा है नाख़ुदा मेरा
वगर्ना मैं भँवर में हूँ मुझे साहिल से क्या निस्बत
फ़िराक़-ए-यार में मेरा दिल-ए-मुज़्तर न ठहरेगा
तुम्हीं सोचो सुकूँ को ताइर-ए-बिस्मिल से क्या निस्बत
कनीज़-ए-हज़रत-ए-मुश्किल-कुशा हूँ दिल से मैं 'परवीं'
तअल्लुक़ मुझ को आसानी से है मुश्किल से क्या निस्बत
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