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जो दिल मिरा नहीं मुझे उस दिल से क्या ग़रज़ - परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ कविता - Darsaal

जो दिल मिरा नहीं मुझे उस दिल से क्या ग़रज़

जो दिल मिरा नहीं मुझे उस दिल से क्या ग़रज़

चलनी न हो जो राह तो मंज़िल से क्या ग़रज़

डूबूँगा गर है मेरे मुक़द्दर में डूबना

ग़व्वास-ए-बहर-ए-इश्क़ को साहिल से क्या ग़रज़

वो दिल को देखता है न आमाल-ए-ज़ाहिरी

लैला के ख़्वास्त-गार को महमिल से क्या ग़रज़

सुनता है कौन आशिक़ों की आह-ओ-ज़ारियाँ

गोश-ए-चमन को शोर-ए-अनादिल से क्या ग़रज़

हम उस के शेफ़्ता हैं रक़ीबों से वास्ता

गुल से ग़रज़ है फ़ौज-ए-अनादिल से क्या ग़रज़

मरता हूँ और जा नहीं सकता सू-ए-अदम

मुझ ना-तवाँ को तौक़-ओ-सलासिल से क्या ग़रज़

क्यूँ दर-पय-ए-तलाश हैं अहबाब-ओ-अक़रबा

'परवीं' शहीद-ए-नाज़ को क़ातिल से क्या ग़रज़

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In Hindi By Famous Poet Parveen Umm-e-Mushtaq. is written by Parveen Umm-e-Mushtaq. Complete Poem in Hindi by Parveen Umm-e-Mushtaq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.