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जो चार आदमियों में गुनाह करते हैं - परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ कविता - Darsaal

जो चार आदमियों में गुनाह करते हैं

जो चार आदमियों में गुनाह करते हैं

ख़ुदा की दी हुई इज़्ज़त तबाह करते हैं

बुतों के होते जो मह पर निगाह करते हैं

क़सम ख़ुदा की बड़ा ही गुनाह करते हैं

बड़ा ही ज़ुल्म ख़ुदा की पनाह करते हैं

हम आह आह तो वो वाह वाह करते हैं

वो बोसा देते नहीं गोरे गोरे गालों का

तुम्हें गवाह हम ऐ महर-ओ-माह करते हैं

बुतो तुम्हीं पे फ़िदा हैं बुतो तुम्हीं पे निसार

यक़ीं न हो तो ख़ुदा को गवाह करते हैं

कभी वो देखते हैं अपने तेग़ ओ बाज़ू को

कभी वो ग़ैज़ से मुझ पर निगाह करते हैं

मजाल क्या है जो लूँ नाम अपने क़ातिल का

तुम्हीं पे लोग मगर इश्तिबाह करते हैं

ख़याल रखते हैं हर वक़्त दोस्ती का शरीफ़

इसी तरह से हमेशा निबाह करते हैं

गुनाह क्या है जो दिल से अज़ीज़ रखते हैं

बने हो यूसुफ़-ए-सानी तो चाह करते हैं

अगर हो सब्र-ओ-क़नाअत की दौलत ऐ 'परवीं'

गदा भी करते हैं वो ही जो शाह करते हैं

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In Hindi By Famous Poet Parveen Umm-e-Mushtaq. is written by Parveen Umm-e-Mushtaq. Complete Poem in Hindi by Parveen Umm-e-Mushtaq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.