Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_9ce99ca28265edceccfa1bcaa5b22918, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
हज़ार शर्म करो वस्ल में हज़ार लिहाज़ - परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ कविता - Darsaal

हज़ार शर्म करो वस्ल में हज़ार लिहाज़

हज़ार शर्म करो वस्ल में हज़ार लिहाज़

न निभने देगा दिल-ए-ज़ार ओ बे-क़रार लिहाज़

न गुदगुदाओ मुझे मैं भी तुम को छेड़ूँगा

मैं कर चुका हूँ तुम्हारा हज़ार बार लिहाज़

नक़ाब उठने की जुरअत कहीं न कर बैठे

बढ़ाए क्यूँ दिल-ए-मुज़्तर का इज़्तिरार लिहाज़

शराब पी चुके बे-चारे को इजाज़त दो

खड़ा है देर से रुख़्सत को ऐ निगार लिहाज़

मैं मद्ह-संज हूँ दिल से तिरे तलव्वुन का

न पाएदार है उल्फ़त न पाएदार लिहाज़

बताओ तो ये रहेगा विसाल में कब तक

हमारे हाथ के बदले गले का हार लिहाज़

करें जो आप तजाहुल तो क्यूँ न समझाऊँ

करे हुज़ूर कहाँ तक वफ़ा-शिआर लिहाज़

वो अपने सर को ज़रा भी उठा नहीं सकते

झुकी हुइ है जो गर्दन तो है सवार लिहाज़

जो उन से पूछो तो उन के ख़िलाफ़ है शोख़ी

जो हम से पूछो तो हम को है नागवार लिहाज़

तकल्लुफ़ उठते ही 'परवीं' वो ख़ूब खुल खेले

हुआ है शोख़ियों से कितना बे-विक़ार लिहाज़

(386) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Parveen Umm-e-Mushtaq. is written by Parveen Umm-e-Mushtaq. Complete Poem in Hindi by Parveen Umm-e-Mushtaq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.