है अपने क़त्ल की दिल-ए-मुज़्तर को इत्तिलाअ

है अपने क़त्ल की दिल-ए-मुज़्तर को इत्तिलाअ

गर्दन को इत्तिलाअ न ख़ंजर को इत्तिलाअ

बे-पर्दा आज निकलेगा पर्दा-नशीं मिरा

कर दे ये कोई महर-ए-मुनव्वर को इत्तिलाअ

छुप-छुप के अब जो निकलो तो मालूम हो मज़ा

कर दी है मैं ने आप के घर भर को इत्तिलाअ

बुलबुल न बाज़ आइयो फ़रियाद-ओ-आह से

कब तक न होगी क़ल्ब-ए-गुल-ए-तर को इत्तिलाअ

किस तरह कर दिया दिल-ए-नाज़ुक को चूर चूर

इस वाक़िआ की ख़ाक है पत्थर को इत्तिलाअ

क्या काम इंक़लाब का कुछ भी नहीं यहाँ

दौर-ए-फ़लक के दौरा-ए-साग़र को इत्तिलाअ

हट जाए इक तरफ़ बुत-ए-काफ़िर की राह से

दे कोई जल्द दौड़ के महशर को इत्तिलाअ

चलने भी वो न पाए थे अपने मक़ाम से

पहले से हो गई दिल-ए-मुज़्तर को इत्तिलाअ

मैं सख़्त-जाँ हूँ क़स्द करे देख-भाल कर

पहले से हो गई है ये ख़ंजर को इत्तिलाअ

'परवीं' रियाज़-ए-ख़ुल्द में किस किस को जाम दें

पहले से है ये साक़ी-ए-कौसर को इत्तिलाअ

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In Hindi By Famous Poet Parveen Umm-e-Mushtaq. is written by Parveen Umm-e-Mushtaq. Complete Poem in Hindi by Parveen Umm-e-Mushtaq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.