दिल में तीर-ए-इश्क़ है और फ़र्क़ पर शमशीर-ए-इश्क़
दिल में तीर-ए-इश्क़ है और फ़र्क़ पर शमशीर-ए-इश्क़
क्या बताएँ पड़ गई है पाँव में ज़ंजीर-ए-इश्क़
देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
तू सरापा हुस्न का नक़्शा है मैं तस्वीर-ए-इश्क़
कोहकन और क़ैस मिल जाएँ तो मैं उन से कहूँ
ले गए क्या साथ ही क़ब्रों में तुम तासीर-ए-इश्क़
वाह-रे इंसाफ़ इतना भी न वाँ पूछा गया
ये क़ुसूर-ए-हुस्न है या अस्ल में तासीर-ए-इश्क़
बात करने से भी नफ़रत हो गई दिलदार को
वाह-रे इज़हार-ए-उल्फ़त वाह-रे तासीर-ए-इश्क़
क्या सबब क्या वज्ह क्यूँ आ कर निकल जाए शिकार
क्यूँ निशाना पर न जाएगा हमारा तीर-ए-इश्क़
पहले अपना सर क़लम करवाए फिर तय्यार हो
हर किसी का काम है जो लिख सके तफ़्सीर-ए-इश्क़
दौलत-ए-दीदार हस्ब-ए-मुद्दआ हासिल हुई
मिल गई जिस शख़्स को तक़दीर से इक्सीर-ए-इश्क़
हुस्न-ए-जानाँ की कशिश दुनिया में बाक़ी रह गई
बद-नसीबी से हमारी उड़ गई तासीर-ए-इश्क़
तू भी गुल के आईने पर खींच दे तस्वीर-ए-हुस्न
मैं भी बुलबुल को सुनाऊँ बाग़ में तक़रीर-ए-इश्क़
क्या शिकायत उस की 'परवीं' ये तो होती आई है
पहले उल्फ़त की थी इज़्ज़त और न अब तौक़ीर-ए-इश्क़
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