अब कोई तिरा मिस्ल नहीं नाज़-ओ-अदा में
अब कोई तिरा मिस्ल नहीं नाज़-ओ-अदा में
अंदाज़ में शोख़ी में शरारत में हया में
मग़रूर से सरकश मुतवाज़े पे हूँ क़ुर्बां
मिट्टी में तो मिट्टी हूँ हवा हूँ मैं हवा में
क्या ख़ूब वो ख़ुद करते हैं यूँ अपनी सताइश
आफ़त हूँ जलाने में क़यामत हूँ जफ़ा में
ग़ैरत नहीं आती तुम्हें हर बात में बैठे
उल्फ़त में मोहब्बत में मुरव्वत में वफ़ा में
जब हो दम-ए-आख़िर तो बचा लेने की ताक़त
फिर ख़ाक-ए-शिफ़ा में न कहीं आब-ए-बक़ा में
वो चाहे तो सब कुछ है न चाहे तो नहीं कुछ
तावीज़ में गंडे में फ़तीले में दुआ में
इक अदना सा पर्दा है इक अदना सा तफ़ावुत
मख़्लूक़ में माबूद में बंदे में ख़ुदा में
सुर्ख़ी के सबब ख़ूब खिला है गुल-ए-लाला
आरिज़ में लबों में कफ़-ए-दस्त ओ कफ़-ए-पा में
उश्शाक़ की ख़ूँ-रेज़ी से क्या फ़ाएदा ज़ालिम
मशग़ूल हो लाखे में तो मसरूफ़ हिना में
आशिक़ तो हमेशा है मोहब्बत की बदौलत
इल्ज़ाम में तक़्सीर में इस्याँ में ख़ता में
हम भी थे कभी ख़ूबी-ए-तक़दीर से 'परवीं'
अर्फ़ात में मुज़दल्फ़ा में मक्का में मिना में
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