Ghazals of Parveen Umm-e-Mushtaq (page 1)
नाम | परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Parveen Umm-e-Mushtaq |
ज़बाँ है बे-ख़बर और बे-ज़बाँ दिल
वक़्त पर आते हैं न जाते हैं
पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़
फैला हुआ है बाग़ में हर सम्त नूर-व-सुब्ह
पहलू-ओ-पुश्त-ओ-सीना-ओ-रुख़्सार आइना
निकाली जाए किस तरकीब से तक़रीर की सूरत
नेक-ओ-बद की जिसे ख़बर ही नहीं
नर्गिसीं आँख भी है अबरू-ए-ख़मदार के पास
नए ग़म्ज़े नए अंदाज़ नज़र आते हैं
न आया कर के व'अदा वस्ल का इक़रार था क्या था
मुतकब्बिर न हो ज़रदार बड़ी मुश्किल है
मुझ को क्या फ़ाएदा गर कोई रहा मेरे ब'अद
मुझ को दुनिया की तमन्ना है न दीं का लालच
मेरी इज़्ज़त बढ़ गई इक पान में
मेरे लिए हज़ार करे एहतिमाम हिर्स
मैं चुप रहूँ तो गोया रंज-ओ-ग़म-ए-निहाँ हूँ
मैं चुप कम रहा और रोया ज़ियादा
महफ़िल में ग़ैर ही को न हर बार देखना
कुछ तबीअत आज-कल पाता हूँ घबराई हुई
किसी की किसी को मोहब्बत नहीं है
ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम हक़ पे हैं बातिल से क्या निस्बत
खिलाया परतव-ए-रुख़्सार ने क्या गुल समुंदर में
ख़ाक कर डालें अभी चाहें तो मय-ख़ाने को हम
करेंगे ज़ुल्म दुनिया पर ये बुत और आसमाँ कब तक
जो दिल मिरा नहीं मुझे उस दिल से क्या ग़रज़
जो चार आदमियों में गुनाह करते हैं
जिस तरह दो-जहाँ में ख़ुदा का नहीं शरीक
जाता रहा क़ल्ब से सारी ख़ुदाई का इश्क़
हिज्र में ग़म की चढ़ाई है इलाही तौबा
हज़ार शर्म करो वस्ल में हज़ार लिहाज़